रचनाकार रेणु बाला जी का परिचय |
"समय साक्षी रहना तुम" पुस्तक खुद को माँ सरस्वती की सुता मान उन्हीं के वरदान से रेणु बाला जी ने अनुपम कृतियों का सृजन कर इनका संग्रह हिंदी कविता जगत को अद्वितीय भेंट है.
पांच भागों में विभक्त ये पुस्तक संयुक्त रूप से हमारी जिंदगी से जुड़े हर पहलू से संबंद्ध रखती है, ये पांच भाग निम्न है-
१. वंदना २. रिश्तों के बंधन ३. कुदरत के पैगाम ४. भाव प्रवाह ५ . सम सामयिक और अन्य
किताब की शुरुवात माँ सरस्वती की वंदना से होती है जो ममत्व के भाव में लिखी गयी है कवयित्री गुरुवर के आशीर्वाद से निहाल होकर अपने गाँव और मिटटी को भी नमन करती है और इस मिटटी को भी माँ का दर्जा मिला है.
वो मिटटी जो एक बेटी को हमेशा खुशियों से भर देती है वही बेटी जब उस धरा माँ की ख़ुशहाली के लिए दुआ करती है तो एक पावन अनुभूति पाठकों के मन में जागृत होती है।
इस इस पुस्तक में रिश्तों को एक आत्मीय लगाव व उनकी गहरी समझ के साथ बयाँ किये गए हैं। यहां कभी माँ का प्यार एक बिटिया की माँ बनकर समझना ... कभी शेष बची माँ को देखकर पिता की भूमिका का महत्व समझना... तो कभी यहां बिटिया 'माँ' बोलकर ममता को पूरी करती है।
कवयित्री के हृदय में एक शिशु के प्रति कितना वात्सल्य और विस्मय है देखिये इन पंक्तियों में-
"सीखे कोई हृदय से लग
तुमसे पीर हिया की हरना....
क्या जानो तुम अभिनय करना
जानो बस मन आनंद भरना
अनभिज्ञ धुप-छाँव और ज्ञान से
जानो ना बातें छल की
फिर भी कैसे सीख गए तुम
खुद ही प्रेम की भाषा पढ़ना ?"
प्रकृति के अनेक रंगों को हमारे जीवन के ताने-बाने में गूंथने का काम कवयित्री ने जिस अंदाज में निभाया है वह अद्भुत है। " चलो नहाएँ बारिश में " नामक कविता आपकी कई यादें ताज़ा न करदे तो कहना।
मेरा ख्याल है कि प्रेम भाव में रची बसी कविताएं इस पुस्तक की आत्मा है-
सोचो प्रेम में इंतज़ार का खत्म होना और फिर ये पंक्तियाँ कि-
"अचानक एक दिन खिलखिलाकरहंस पड़ी थी चमेली की कलियाँऔर आवारा काले बादललग गए थे झूम झूम के बरसनेदेखो तो द्वार पर तुम खड़े थे।''
प्रेम में एकांकीपन और दूरियों के दिन कैसे बीतते हैं-
"जब तुम ना पास थे
खुद के सवाल थे
अपने ही जवाब थे
चुपचाप जिन्हें सुन रहे
जुगनू,तारे,महताब थे। "
प्रेम में बगैर कोई सवाल के प्रेमिका का अस्तित्व स्वीकार होने का मतलब तलाश ख़त्म होना होता है। 'तुम्हारी चाहत' कविता से ये पंक्तियाँ कि-
"ये चाहत नहीं चाहती
मैं बदलूँ और भुला दूँ अपना अस्तित्व..."
प्रेम में समर्पण को बयाँ करती हुई पंक्तियाँ-
"सुनो! मनमीत तुम्हारे हैं
मेरे पास कहाँ कुछ था
सब गीत तुम्हारे हैं"
प्रेम के लिए त्याग करने वाला भी महान होता है जिसे अक्सर भुला दिया जाता है। सिद्धार्थ का बुद्ध हो जाने के पीछे यशोधरा का त्याग था तब कवयित्री लिखती हैं-
" बुद्ध की करुणा में सराबोर हो
तू बनी अनंत महाभागा
जैसे जागी थी, तू कपलायिनी
ऐसे कोई नहीं जागा। "
एक जोगी स्वयं का दुःख मानकर दुनियां का दुःख गाता फिरता है और कवयित्री का कोमल हृदय ये जानने के लिए बैचेन है कि-
"इश्क़ के रस्ते खुदा तक पहुंचे
क्या तूने वो पथ अपनाया जोगी "
रेणु जी की ये किताब दुनियां में हो रही उथल-पुथल और विषाक्त भावों को भुला देती है। कवयित्री वेदना की कल्पना मात्र से डर कर कहती हैं-
'सुन, ओ वेदना' नामक कविता से ये पंक्तियाँ
"ना रुला देना मुझे
ना फिर सतना मुझे
दूर किसी जड़ बस्ती में
जाकर के बस जाना तुम"
धार्मिक दंगों से उभरने को एकता की मिसाल देती है 'शुक्र है गांव में ' नामक कविता और इस कविता का एक पात्र रहीम चचा-
"बरगद से चाचा हैं
चाचा सा बरगद है
दोनों की छाँव
गाँव की सांझी विरासत है। "
प्रेम रस की कविताओं के बीच में कुछ-एक पंक्तियों का भाव पूरी कविता के भाव से अलग होता है तब मानों कविता की लय टूट गयी हो लेकिन जब कवयित्री उन भावों का मेल कराती हैं तब फूटता है एक वास्तविक सच्चा इश्क़ और इस इश्क़ के नशे में डूबी हुई जोगन की पुकार।
ये पुस्तक कवयित्री का किसी एक धर्म विशेष से जुड़ाव होने की छाप कई जगह पर छोड़ती रही है फिर भी भाषा शैली एकदम निर्मल व सरल है जिसमें अलंकारों का प्रयोग बहुत कम देखने को मिलता है.
पाठकों को ये किताब दुनियां को एक अलग व सकारात्मक नजरिये से देखने को प्रेरित करती है मानों दुनियां में सब अच्छा ही अच्छा हो रहा हो और हर जगह शांति ही छाई हुई है।रेणु जी की अविस्मरणीय और सादगी से उकेरी गई कविताएं उद्वेलित मन को सही दिशा देने में कामयाब रहती हैं।
अद्भुत अद्वितीय अनोखी प्यारी सी किताब... वाह
"अपने अनंत प्रवाह में बहना तुम
पर समय साक्षी रहना तुम"
पुस्तक की एक विहंगम दृष्टि प्राप्त हुई इस समीक्षा से। रेणु जी की कविताएं समय-समय पर हम उनके पृष्ठ पर पढ़ते रहे हैं, अतः उनकी लेखनी से परिचय नया नहीं है। उनके सृजन का संकलित रूप निश्चय ही संग्रहणीय होगा, इसमें संदेह नहीं। उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं तथा आपका हार्दिक आभार।
ReplyDeleteआदरणीय जितेन्द्र जी, आपकी यहां उपस्थिति की बहुत आभारी हूं। आप सभी के नैतिक सहयोग और समर्थन से हीपुस्तक छप सकी। पुनः आभार आपका🙏🙏
Deleteजितेंद्र जी आपका आभार। 🙏🏻
Deleteबहुत ही बेहतरीन समीक्षा!
ReplyDeleteआपकी समीक्षा पढ़कर मैं बहुत ही उत्सुक हूँ पुस्तक को पढ़ने के लिए जो कुछ ही दिनों में मिलने वाली है मुझे वो भी रेणु मैम के द्वारा उपहार स्वरूप!
पर मैं इससे एक एक पाठक के रूप में खरीदना चाहती हूँ और पुस्तक उपहार स्वरूप मिलने के बावजूद भी खरीदुंगी क्योंकि जब तक मैं खरीद नहीं लुंगी तब तक मेरे मन में अजीब सी हलचल होती रहेगी!और मुझे आत्मसंतुष्टि मिलेगी!
इतनी बारीकी से समीक्षा करने के लिए आपका तहेदिल से बहुत बहुत आभार🙏
रेणु मैम को बहुत सारा प्यार 💜❤
इस लेखनी का ब्लॉग जगत में हर कोई कायल है।
Deleteआभार आपका।
ये किताब तो अनमोल है कीमत तो बस कोरे बरकों की है।
प्रिय रोहित, पुस्तक की गहन समीक्षा ने मुझे अभिभूत कर दिया। समझ नहीं पा रही क्या कहूं। सच कहूं तो पुस्तक के प्रकाशन के बारे में कभी सोचा नहीं था। पर कुछ शुभचिंतकों के प्रोत्साहन से ये पुस्तक छप सकी। शायद मैं अकेली सब न कर पाती। तुमने अपना कीमती समय निकालकर पुस्तक का गहन विश्लेषण किया ये मेरा सौभाग्य है। तुमने पुस्तक के कमज़ोर पक्ष की ओर भी संकेत किया है ये निष्पक्ष समीक्षक की पहचान है। निश्चित रूप से कई रचनाओं की लयबद्धतता बाधित है और अलंकार,छंद और रस विधान से सदैव ही अनभिज्ञ रही हूं और चाहकर भी इन सबमें पारंगत ना हो सकी, जिसके लिए सदैव ही अपने सरल,स्नेही पाठकों से क्षमा प्रार्थी हूं! और धर्म विशेष को पूर्णतः तो नहीं , पर आंशिक तौर पर स्वीकार करती हूं। पाश के अनन्य पाठक से मुझे इसी तरह की समीक्षा की आशा थी। सच कहूं तो ये पुस्तक नहीं एक संघर्ष है। तुमने बहुत ही गहराई से रचनाओं की आत्मा को छुआ। जिसके लिए मेरी शुभकामनाए और स्नेह । तुम्हारा ये प्रयास मेरे लिए अनमोल उपहार है और अविस्मरणीय भी!!
ReplyDeleteबहना,
Deleteये तो मेरा सौभाग्य है। मुझे आपसे इतनी खूबसूरत किताब उपहार में मिली। ना ही तो मैं समीक्षक हूँ और ना ही मुझे समीक्षा करनी आती है लेकिन जैसा मुझे महसूस हुआ वैसा मैंने लिख दिया। वैसे भी मूल विचारों की समीक्षा मुझे हमेशा 'छोटा मुँह और बड़ी बात'लगती रही है। 😀
आपका स्नेह अनमोल।
आभार।
प्रिय मनीषा, तुम्हारे स्नेह के लिए ढेरो प्यार। और निश्चित रूप से तुम्हारी पुस्तक भेजने के लिए तैयार है। कुछ कारणों से विलंब हुआ, पर अब जल्द ही तुम्हारे हाथों में होगी। तुम बहुत स्वाभिमानी हो जानती हूं पर फ़िलहाल तुम्हारे लिए एक प्रति ही पर्याप्त है, क्योंकि पुस्तकें बहुत संख्या में प्रकाशित नहीं करवा पाई। 🌷🌷❤️❤️
ReplyDeleteपुस्तक आपके द्वारा उपहार स्वरूप मिलने के बाद भी मैं इसलिए खरीदना चाहतीं हूँ कि मैं भी किसी को उपहार स्वरूप देना है! इससे मुझे बहुत ही खुशी मिलेगी!
Delete🌷🌷❤️❤️🙂
Deleteसमय साक्षी रहना तुम, रेणु बाला जी की इस पुस्तक की समीक्षा बहुत ही सुंदर है, और पुस्तक के बारे में सार्थक उत्सुकता जगाती है। बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteयहां उपस्थित होकर आत्मीयता भरी प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक आभार आपका अनीता जी।🙏🌷🌷💐💐
Deleteअनिता जी क़िताब बेहद शानदार है। उत्सुकता जगी है तो फिर इसे पढ़कर शांत कीजियेगा।
Deleteआभार।
रेणुबाला की कलम भी उन्हीं की तरह सरल, सहज और निश्च्छल है.
ReplyDeleteउनकी रचनाओं में बनावट का तो नामो-निशान भी नहीं होता और वो दिल को छू लेने की ताक़त रखती हैं.
साहित्यिक जगत में 'समय साक्षी रहना' की सफलता के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !
आदरणीय गोपेश जी, आपकी प्रतिक्रिया से भावुक हूं। मेरे सृजन के अस्फुट स्वरों को सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार। काव्य के मापदंडों पर खरी न उतरने वाली सहज अभिव्यक्ति को आप जैसे गुणीजनों का स्नेह प्राप्त हुआ, ये मेरा सौभाग्य है। पुनःहार्दिक 🙏🙏💐💐
Deleteये वाकई एक सफल किताब है।
Deleteआपका आभार गोपेश जी।
रेणु बहन की लेखनी हर ब्लागर के लिये सुधा धार बन कर उतरती है उनके लेखन की प्रतिक्रिया स्वरूप।
ReplyDeleteकिसी भी ब्लागर से अपरिचित नहीं उनका सरल सहज प्रेम सिक्त लेखन। पुस्तक निःसंदेह सफल होनी ही है, रेणु बहन को उनके इस संग्रह के लिए अनंत शुभकामनाएं।
"समय साक्षी रहना तुम" की समीक्षा आदरणीय रोहतास जी ने सांगोपांग की है,जो पुस्तक प्रेमियों को पुस्तक पढ़ने को प्रेरित कर रही है।
सुंदर समीक्षा के लिए बहुत बहुत बधाई रोहतास जी आपको।
प्रिय कुसुम बहन, आपके स्नेह की सदैव आभारी हूं 🙏🌷🌷💐💐❤️
Deleteबेहतरीन समीक्षा । पुस्तक तो मैंने नहीं पढ़ी , लेकिन ब्लॉग पर जितनी भी रचनाएँ पढ़ी हैं अब तक उसी आधार पर कह सकती हूँ कि आपने पुस्तक की अच्छी समीक्षा की है ।
ReplyDeleteरेणु को पुनः बधाई ।
प्रिय दीदी, आपका स्नेह मेरे लिए अनमोल है। हार्दिक आभार आपका 🙏🌷🌷❤️❤️
Deleteआपकी कलम से सृजित"समय साक्षी रहना तुम" रेणु जी की पुस्तक की गहन समीक्षा बहुत रोचक लगी । रेणु जी के सहृदय ,सरल और स्नेहिल व्यक्तित्व के दर्शन उनकी लेखन में सहज भाव से होते हैं ।उनकी पुस्तक लोकप्रियता के आयाम स्थापित करे उसके अनन्त शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteकृपया *उसके लिए अनन्त शुभकामनाएं* पढ़ें ।
Deleteप्रिय मीना जी,आपके स्नेह की सदैव आभारी हूं 🙏🌷🌷❤️❤️
Deleteरेणु जी को हार्दिक बधाई और Rohitas Ghorela जी को साधुवाद
ReplyDeleteसुन्दर-सुन्दर रचनाओं की उम्दा समीक्षा पढ़ने को मिली
आपकी उपस्थिति का सादर आभार प्रिय दीदी 🙏🌷🌷❤️❤️
Deleteरेणु जी की पुस्तक मुझ तक पहुंची है, रोहितास जी । पढ़ रही हूं, आपकी समीक्षा से रचना के मर्म तक पहुंचने में हर पाठक को आसानी होगी ।
ReplyDeleteप्रिय रेणु जी की कविताएं निश्चलता,जीवंतता और विश्वास की अमिट छाप छोड़ती हैं जिससे हर पाठक स्वयं को रचना से जुड़ा हुआ महसूस करता है, उनकी सहजता सरलता रचनाओं को प्रवाह देती है ।
रेणु जी की पुस्तक की सुंदर और सार्थक समीक्षा के लिए रोहितास जी आपको मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।
रेणु जी की पुस्तक साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट मुकाम हासिल करे ।मेरी कोटि कोटि बधाइयां और अनंत शुभकामनाएं 💐💐
सादर आभार आदरणीय दीदी 🙏🙏🌷🌷❤️❤️
ReplyDeleteसस्नेह आभार प्रिय जिज्ञासा जी। पुस्तक पर ये सकारात्मक दृष्टिकोण बहुत संतोष देता है।🌷🌷❤️❤️
ReplyDeleteप्रिय रेणु उन चंद रत्नों में से एक हैं जो ब्लॉग जगत के रत्नाकर से मुझे मिले हैं। वे ना केवल एक बेहतरीन कवयित्री हैं बल्कि एक बहुत अच्छी सखी, एक संवेदनशील इंसान हैं। मेरी रचना पर उनकी टिप्पणी न आए तो मन में एक कसक सी रहती है। मुझे भी 'समय साक्षी रहना तुम' की प्रति मिल चुकी है। ब्लॉग पर उनकी रचनाएँ कितनी ज्यादा लोकप्रिय हैं, ये हम सब जानते ही हैं।
ReplyDeleteरोहितास भाई के द्वारा की गई समीक्षा दर्शा रही है कि उन्होंने कितने मनोयोग से हर रचना को पढ़ा है। रोहितास भाई वैसे भी बेबाक राय देने के लिए जाने जाते हैं। बस एक बात समझ नहीं आई कि रेणु जी का एक धर्म विशेष की ओर झुकाव किन रचनाओं से लगा ?
वैसे हर समीक्षक और पाठक अपनी अपनी दृष्टि से रचनाओं का आकलन करता है और उसे अपनी राय रखने का पूरा हक है। समीक्षा में दिए गए उद्धरण पुस्तक पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिनका चुनाव समीक्षा को सफल व प्रभावपूर्ण बनाता है।
हार्दिक आभार प्रिय मीना । आपकी उपस्थिति से बहुत अच्छा लगा।🙏🌷🌷
Deleteमीना जी आभार,
Deleteआपकी उपस्थित और टिप्पणी ही मेरे लिये बहुत मायने रखती है। धर्म विशेष से लगाव की छाप छोड़ने की बात है कही है मैने, मुझे कई जगहों पर ऐसा लगा चाहे शादी विवाह का जिक्र हो, रीति रिवाज का जिक्र हो या कोई तुलना हो या कोई वंदना हो ये सब मेरी दृष्टि में उस घेरे में आती है।
फिर भी ये सब कांटछांट करने की बात है क्योंकि निजता और परिवेश प्रभाव छोड़ता ही है लेकिन पाठकों को पढ़ने में बाधक नहीं हैं।
🙏🏻
सधी और सार्थक समीक्षा के लिए रोहिताश जी को साधुवाद! साहित्य संस्कृति का दर्पण और समाज की उदात्त परंपराओं का वाहक होता है। रेणु जी की कविताओं में माटी की वह सुगंध और परंपराओं की सनातन मीठास मिलती है। इस अर्थ में उनकी कविताएँ सोद्देशय भी हैं। कवयित्री और समीक्षक दोनों को बधाई और शुभकामनाएँ!!!
Deleteआपका सादर आभार और धन्यवाद आदरनीय विश्वमोहन जी।आपकी प्रतिक्रिया आपका आशीष है मेरी रचनात्मकता पर🙏🙏
Deleteबहुत ही लाजवाब समीक्षा आ.रोहिताश जी की कलम से...
ReplyDeleteरेणु जी एवं उनकी लेखनी की जितनी भी प्रशंसा करें कम ही होगी। उनके स्वभाव के अनुरूप ही उनकी रचनाओं में सहजता सहृदयता एवं स्नेहिल उद्गार भरे पड़े हैं ...मैं भी आजकल इस अनुपम पुस्तक में भरे स्नेहरस का आस्वादन पुनः पुनः कर रही हूँ ।आ. रोहिताश जी की विस्तृत विश्लेषणात्मक समीक्षा पाठक को पुस्तक पढ़ने को प्रेरित करती है बस धर्म विशेष वाली बात के लिए मैं भी मीना जी से सहमत हूँ और पुस्तक में ऐसी उक्तियों को ढ़ूँढ रही हूँ ...।
प्रिय सुधा जी, आपकी स्नेहिल उपस्थिति ने सदैव ही मनोबल बढ़ाया है। हार्दिक आभार आपके स्नेहासिक्त उद्गारों के लिए 🙏🌷🌷
Deleteप्रिय रेणु दी के काव्य संग्रह की इस समीक्षा को अनगिनत बार देखे पढ़े और हर बार यही सोचकर लौट गये कि दी के काव्य संग्रह की इतनी सुगढ़,सुंदर,विस्तृत समीक्षा पर सबसे अच्छी प्रतिक्रिया स्वरूप कवया लिखें।
ReplyDeleteदी की पुस्तक जितनी सहज,सरल और सीधे मन पर गहरे उतरती कविताओं से सुशोभित है उतनी ही विविचनात्मक सूक्ष्म समीक्षा लिखी है आपने भाई।
स्नेह, ममत्व,समाजिक दायित्व, देशभक्ति और प्रेम की नाजुक मनमोहक भावनाओं से गूँथी दी की पुस्तक की हर रचना संदेशात्मक है, जिसकी समीक्षा में पूर्णतया न्याय किया गया है।
लेखिका और समीक्षक दोनों को अत्यंत बधाई।
सस्नेह
हार्दिक आभार और प्यार प्रिय श्वेता।
Deleteबधाई आपको रेणु जी बहुत सुन्दर समीक्षा की गई है, दर असल आपकी लेखनी में ही जादू है ।
ReplyDeleteबधाई आपको रेणु जी बहुत सुन्दर समीक्षा की गई है, दर असल आपकी लेखनी में ही जादू है ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया और आभार प्रिय दीदी।आपकी उपस्थिति से मुझे अपार हर्ष हुआ 🙏🙏
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